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कविता

चीजों को बचाने के लिए

विशाल श्रीवास्तव


बारिश के बारीक ब्यौरों में मत जाओ
यह बादलों के तिरछे होने का दुर्लभ समय है
जाओ और अपनी परछाईं के साथ
नाचो एक बढ़िया नाच
किसी कलात्मक रूपक की तरह
इस भीगे हुए समय के निर्दोष गीलेपन को
घर में सजाओ जगह-जगह
 
देखो उस अकेली और चुपचाप औरत को 
जो घुटनों पर सिर रखकर बैठी है
उसके करीब जाओ 
और हो सके तो
आहिस्ते से पोंछ दो उसकी जमी हुई उदासी
उसके दुर्लभ शब्द बचाओ
भविष्य की कविताओं के बेहतर शिल्प के लिए
 
काँपते हाथों वाले उस आदमी से मिलो
अपना गर्म हाथ 
उसके कंधों पर रखो आहिस्ते से
इस तरह छुओ उसके भीतर बची ऊष्मा को
और देखो दिलासे से पैदा हुई
उसके चेहरे की चमक को
इस अद्भुत प्रकाश को बचाओ
आने वाले अँधेरे समय के लिए
 

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